हिंदी भाषा मे कई ऐसे शब्द होते हैं जिनका प्रयोग हम कम अपनी वाक्य शैली में कई बार करते है परन्तु उनके उपयोग का हमे पता नही होता है। जी हां इस आर्टिकल में हम पल्लवन के बारे में जानेंगे और इसको उदाहरण के द्वारा समझेंगे।
पल्लवन की परिभाषा
किसी लोकोक्ति, शूक्ति, वाक्य, उक्ति, कहावत आदि के भावों को समझना और उसकी बिस्तार से व्याख्या करना पल्लवन कहलाता है। पल्लवन की सहायता से किसी विषय वाक्य को विस्तार पूर्वक समझाया जाता है ताकि उस वाक्य में छिपे भाव की गहराई को अच्छे से समझाया जा सके। पल्लवन का सामान्य अर्थ होता है भाव बिस्तार अर्थात किसी वाक्य के भाव के बारे में बिस्तार से बताना।
पल्लवन के कुछ नियम
1. पल्लवन की भाषा बहुत अधिक अलंकृत नहीं होनी चाहिए, यह बहुत ही सरल होनी चाहिए।
2. जिस पंक्ति का पल्लवन करने को कहा जाए सिर्फ उस पंक्ति को ही बिस्तार के साथ बताना चाहिए।
3. इसमें वाक्य सरल और स्पष्ट होनी चाहिए।
4. इसी के साथ हमे इसमे निबंधात्मक प्रक्रिया को हमे इसमे अपनाना पड़ता है।
उदाहरण
1. कथन – बिना दुःख के सुख निसार।
पल्लवन – मनुष्य के जीबन में दुख व सुख दोनों का स्थान है। कभी वह सुख भोगता है तो कभी उसे दुख भोगना पड़ता है। यद्यपि कोई व्यक्ति अपने जीबन में दुःख नही चाहता सदा सुख चाहता है तदापि दुख की भी जीबन में उपयोगिता है। जब दुख के बाद सुख आता है तो ही मनुष्य सुख के बास्तविक मूल्य को समझ पाता है। जिस प्रकार प्रकाश का महत्त्व तभी समझ मे आता है जब आप पहले अंधकार का अनुभव कर चुके होते हैं।
2. कथन – जहाँ न पहुंचे रवि वहाँ पहुचे कवि।
पल्लवन – प्रस्तुत पंक्ति का अभिप्राय है कि सूर्य की किरणें भी जहां तक अपना प्रभाव नहीं छोड़ सकती अर्थात सूर्य का प्रकाश भी जिस स्थान को उजागर नहीं कर सकता है। उस स्थान विशेष तक कवि की कल्पना अपना प्रभाव छोड़ सकती है अर्थात कबि अपनी कविता के माध्यम से कण कण तक अपनी बात पहुंचा सकता है।
3. कथन – ह्रदय नहीं वह पत्थर है जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं।
पल्लवन – कवि इस पंक्ति के माध्यम से कहना चाहता है कि जिस व्यक्ति के ह्रदय (दिल) मे अपने राष्ट्र (देश) के लिए प्यार नही है अर्थात जिस देशवाशी के अंदर अपने देश के प्रति देशभक्ति, प्यार और समर्पण नही है। उसका ह्रदय ह्रदय के समान नहीं है उसका ह्रदय एक पत्थर के समान है। अर्थात जिस व्यक्ति के अंदर अपने देश के प्रति प्यार नहीं है उसका ह्रदय एक पत्थर के समान है।
4. कथन – का बरखा जब कृषि सुखानी
पल्लवन – इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि किसी भी कार्य को करने के लिए उस कार्य का एक निश्चित समय होता है। इसलिए उस कार्य को समय निकलने से पहले ही समाप्त कर ले क्योंकि समय समाप्त होने के बाद उस कार्य को करने का कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है जिस प्रकार खेत मे फसल के सूख जाने पर वर्षा का कोई लाभ नहीं होता है। अर्थात खेत की फसल सूखने के बाद वर्षा होने का कोई लाभ नहीं होता है।