वाक्य का अर्थ –
जब किसी शब्द समूह से पूरी बात की समझ आ जाए तो वह वाक्य कहलाता है। जैसे भारत ने इंग्लैंड से क्रिकेट मैच जीता – इस शब्द समूह में हमें पूरी बात समझ आ रही है कि किस देश ने किस देश से मैच जीता इसलिए यह एक वाक्य का रूप है।
साधारण शब्दों में कहें तो – कुछ शब्दों का एक ऐसा व्यवस्थित समूह जिससे कोई अर्थ प्रकट हो वाक्य कहलाता है।
वाक्य के भेद
वाक्य के दो भेद होते है –
(1) उद्देश्य (Subject)
(2) विद्येय (Predicate)
(1) उद्देश्य (Subject) –
जब हम किसी बात को कहते हैं तो उस बात में हम किसी विषय की चर्चा करते हैं उस विषय पर चर्चा करने का हमारा एक उद्देश्य होता है इसीलिए हम उस विषय पर चर्चा करते हैं।
इसी प्रकार से जब किसी वाक्य में किसी विषय पर चर्चा की जा रही हो तो उसे उद्देश्य कहा जाता है।
साधारण शब्दों में कहें तो – जिस विषय के बारे में कुछ बात की जा रही है उसी विषय को ही उद्देश्य कहा जाता है, जैसे –
राकेश अखबार बेचता है।
विराट कोहली क्रिकेट खेलता है।
राहुल गांधी चुनाव लड़ता है।
गुलशन पहाड़ पर चढ़ता है।
मोना सब्जी बेचती है।
ऊंट बोझा ढोता है।
इन सभी उदाहरणों में राकेश, विराट कोहली, राहुल गांधी, गुलशन, मोना, ऊंट, के विषय के बारे में बताया गया है, अतः यह सब इन वाक्यों के उद्देश्य हैं।
इन वाक्यों के अंतर्गत कर्ता और कर्ता का विस्तार आता है, जैसे – ‘परिश्रम करने वाले की कभी हार नहीं होती,’ वह सदा सफल होता है। इस वाक्य में कर्ता यानी व्यक्ति का विस्तार “परिश्रम करने वाला” शब्द से की गई है, इस प्रकार से यह कर्ता है और कर्ता का विस्तार वाक्य के उद्देश्य में आता है।
उद्देश्य के भेद –
उद्देश्य के दो भेद होते है-
(i) कर्ता – उद्देश्य में कर्ता का विस्तार किया जाता है।
(ii) कर्ता का विशेषण या कर्ता से संबंधित शब्द –
(2) विद्येय (Predicate) –
जब किसी वाक्य में उद्देश्य के विषय में जो कुछ भी कहा जाता है, उसे विद्येय कहते हैं।
जैसे –
पूनम किताब पढ़ती है।
सचिन क्रिकेट खेलता है।
नानी कहानियां सुनाती है।
वह बहुत दूर स्कूल जाता है।
अध्यापक कक्षा में बढ़ाता है।
नेता रैली में भाषण देता है आदि।
इन ऊपरलिखित वाक्यों में क्रिकेट खेलता, कहानियां सुनाती, स्कूल जाता, कक्षा में पढ़ाता, भाषण देता, आदि विद्येय के उदाहरण हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो – वाक्य से जब उदेश्य को अलग कर लिया जाता है, तो उसके बाद वाक्य में जो भी शब्द शेष रहते हैं वह विद्येय कहलाते हैं।
विधेय के भेद –
विधेय के छः भाग होते है-
(i) क्रिया
(ii) क्रिया के विशेषण
(iii) कर्म
(iv) कर्म के विशेषण या कर्म से संबंधित शब्द
(v) पूरक
(vi)पूरक के विशेषण।
नीचे जी के उदाहरणों से आसानी से उद्देश्य तथा विधेय को समझ सकते हो –
बच्चा दूध पीता है।
लाल घोड़ा हरी घास खाता है
पहले वाक्य में “बच्चा उद्देश्य है और “दूध पीता है” विधेय है, जबकि दूसरे वाक्य में “लाल घोड़ा” उद्देश्य है, “हरी घास खाता है” विधेय है।
इस प्रकार से ‘वाक्य से जब उदेश्य को अलग कर लिया जाता है, तो उसके बाद वाक्य में जो भी शब्द शेष रहते हैं वह विद्येय कहलाते हैं’
वाक्य के रचना के आधार पर भेद-
रचना के आधार पर वाक्य के तीन भेद होते है-
(i) साधरण वाक्य या सरल वाक्य (Simple Sentence)
(ii) मिश्रित वाक्य (Complex Sentence)
(iii) संयुक्त वाक्य (Compound Sentence)
(i) साधरण वाक्य या सरल वाक्य – जीन शब्दों के समूह या वाक्यों में एक ही क्रिया और एक ही कर्ता का प्रयोग होता है वे साधारण वाक्य कहलाते हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो जिन वाक्यों का केवल एक ही उद्देश्य और एक ही विधेय हो वह साधारण वाक्य या सरल वाक्य होते हैं।
जैसे बिजली चमकती है, पानी गिरा,
उपयुक्त वाक्यों में एक उद्देश्य है और एक विधेय है, अतः यह साधारण वाक्य या सरल वाक्य का एक उदहारण है।
(ii) मिश्रित वाक्य – जब किसी वाक्य में एक से अधिक वाक्य मिल जाए लेकिन उनमें एक मुख्य वाक्य तथा बाकी बचे आश्रित उपवाक्य हो तो, वह मिश्रित वाक्य कहलाते हैं।
साधारण शब्दों में कहें तो जिस वाक्य मैं उद्देश्य और विधेय के अलावा अधिक समापिक क्रियाएँ हो, उसे मिश्रित वाक्य कहा जाता है।
जैसे – वो कौन सा घोड़ा है जिसने महाप्रतापी राजा को घायल होने पर भी महल तक पहुंचाया।
जिन वाक्यों में आपस में ‘कि’; ‘जो’; ‘क्योंकि’; ‘जितना’; ‘उतना’; ‘जैसा’; ‘वैसा’; ‘जब’; ‘तब’; ‘जहाँ’; ‘वहाँ’; ‘जिधर’; ‘उधर’; ‘अगर/यदि’; ‘तो’; ‘यद्यपि’; ‘तथापि’; आदि से मिले-जुले शब्द हों वह मिश्रित वाक्य कहलाते हैं। जैसे –
तुम्हारे पापा ने तुम्हें टांडा ‘क्योंकि’ वह तुम्हें गलत रास्ते पर चलते नहीं देखना चाहते। ‘इतनी’ तुम्हारी उम्र है, उससे ज्यादा मुझे नौकरी का तजुर्बा है।
‘जैसा’ करोगे ‘वैसा’ ही पाओगे।
जब तक सचिन क्रिकेट में नहीं। लौटते’ तब तक भारत का मैच जीतना मुश्किल है।
‘वहां’ जाओ ‘जहां’ सम्मान मिले।
‘इधर’-‘उधर’ की बातें मत करो।
‘तुमने’ नौकरी नहीं की तो जिंदगी अच्छे से नहीं जी पाओगे।
ऊपरलिखित वाक्यों में जहां-जहां पर ‘क्योंकि’; ‘जितना’; ‘उतना’; ‘जैसा’; ‘वैसा’; ‘जब’; ‘तब’; ‘जहाँ’; ‘वहाँ’; ‘जिधर’; ‘उधर’; ‘अगर/यदि’ आदि शब्दों का प्रयोग किया गया है वह सभी मिश्रित वाक्य के उदाहरण हैं।
(iii) संयुक्त वाक्य – जब वाक्यों में एक से अधिक वाक्य मिले हो लेकिन सभी वाक्य मुख्य या प्रधान हो तो उन्हें संयुक्त वाक्य का नाम दिया जाता है।
साधारण शब्दों में कहें तो जिस वाक्य से साधारण अथवा मिश्र वाक्य का मेल अवयव द्वारा हो जाए उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं। संयुक्त वाक्य शब्द समूह या वाक्य समूह को कहा जाता है जिसमें दो या दो से अधिक सरल वाक्य होते है।
संयुक्त वाक्य आपस में उलझे हुए और लंबे होते हैं जैसे – मैं पानी पीकर लेट गया, सर में पीड़ा होने लगी और दर्द इतना बढ़ गया कि तुरंत डॉक्टर को घर पर बुलाना पड़ा। इस प्रकार के लंबे वाक्यों में संयोजक ‘और’ है, जिसके द्वारा दो मिश्र वाक्य को मिलाकर संयुक्त वाक्य बनाया जाता है।
जिन वाक्यों में अग्रलिखित शब्द जुड़े हों वह सयुंक्त वाक्य कहलाते है – और, एवं, तथा, या, अथवा, इसलिए, अतः, फिर भी, तो, नहीं तो, किन्तु, परन्तु, लेकिन, पर आदि।
वाक्य के अर्थ के आधार पर भेद –
अर्थ के आधार पर वाक्य मुख्य रूप से आठ प्रकार के होते है-
(i) सरल वाक्य (Affirmative Sentence) – जैसे सरल वाक्य के नाम से ही पता चलता है कि ऐसे वाक्य जिनमें किसी भी बात को सरल रूप से समझाने की कोशिश की गई हो, वह सरल वाक्य कहलाते हैं। जैसे – भारत ने इंग्लैंड से क्रिकेट मैच जीता, विराट कोहली जश्न मना रहे हैं।
(ii) निषेधात्मक वाक्य (Negative Sentence) – निषेधात्मक वाक्य का अर्थ है – वह वाक्य जिनमें किसी कार्य के ना करने का बोध किया गया हो, जैसे – आज मैच नहीं होगा। मैं कल स्कूल जाऊंगा।
(iii) प्रश्नवाचक वाक्य (Interrogative Sentence) – जब किसी वाक्य को पढ़कर ऐसा प्रतीत हो की इसमें प्रश्न पूछा जा रहा है तो वह प्रश्नवाचक वाक्य कहलाते हैं, जैसे – तुम स्कूल क्यों जाओगे, तुमने खाना क्यों नहीं खाया –
(iv) आज्ञावाचक वाक्य (Imperative Sentence) – जिन वाक्यों में किसी काम को करने की आज्ञा का भाव छिपा हुआ हो उन्हें आज्ञावाचक वाक्य कहा जाता है। जैसे – जब तक तुम परिश्रम नहीं करोगे तब तक तुम्हें सफलता नहीं मिलेगी और तुम्हें बड़ों का सम्मान करना चाहिए।
(v) संकेतवाचक वाक्य (Conditional Sentence) – जिन वाक्यों में किसी बात का संकेत हो यानी एक क्रिया का होना दूसरी क्रिया पर निर्भर होता हो, ऐसे वाक्य को संकेतवाचक वाक्य कहा जाता है।
जैसे – यदि तुमने परिश्रम किया तो तुम्हें सफलता जरूर मिलेगी।
अगर पानी होगा तो, सिंचाई होगी और, सच्चाई होगी तो फसल होगी।
(vi) विस्मयादिबोधक वाक्य (Exclamatory Sentence) – जब वाक्यों में शोक, घृणा आदि का बोध हो तो उन्हें विस्मयादिबोधक वाक्य कहते हैं, जैसे – वाह- आ गए राजकुमार। हाय – मैं लुट गया।
(vii) विधानवाचक वाक्य (Assertive Sentence) – जब वाक्य में क्रिया के करने या होने का बोध हो तो उसे विधानवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे – मैंने पानी पिया, फसल तैयार हो रही है, राम पढ़ रहा है।
(viii) इच्छावाचक वाक्य (IIIative Sentence) – जिन वाक्यों में इच्छा आदि का बोध हो उन्हें इच्छावाचक वाक्य जाता है। जैसे – तुम्हारा भला हो, आज मैं केवल दूध पी लूंगा, भगवान तुम्हारी मनोकामना पूरी करें।
वाक्य के अनिवार्य तत्व
वाक्य में निम्नलिखित छ अनिवार्य तत्व है-
(1) सार्थकता – हर वाक्य में सार्थक शब्दों का प्रयोग किया जाता है अतः सभी वाक्यों में सार्थकता पाई जाती है।
(2) योग्यता – हर वाक्य में प्रसंग के अनुसार योग्यता होती है इसलिए वाक्यों का एक तत्व योग्यता भी है
(3) आकांक्षा – आकांक्षा का अर्थ होता है इच्छा अर्थात वाक्य अपने आप में ही पूरा होना चाहिए किसी ऐसे शब्द के प्रयोग को नहीं छोड़ना चाहिए जिससे वह वाक्य अधूरा लगे।
(4) निकटता – वाक्य को लिखते या पढ़ते समय वाक्य में निकटता होना आवश्यक है।
(5) पदक्रम – वाक्यों का एक निश्चित पद क्रम में होना अनिवार्य है नहीं तो उस वाक्य को पढ़ने में बहुत मुश्किल होगी या वह वाक्य अधूरा होगा।
(6) अन्वय – अन्वय का अर्थ है मेल अतः वाक्य में लिंग, वचन, पुरुष, आदि का क्रिया के साथ ठीक-ठीक मेल होना चाहिए नहीं तो वह वाक्य पढ़ने योग्य नहीं होगा और वह अधूरा ही रह जाएगा।
वाक्यों का एक वाक्य से दूसरे वाक्य में रूपांतरण –
जब एक वाक्य को दूसरे वाक्य में बिना अर्थ बदले परिवर्तित किया जाता है तो उस प्रक्रिया को “वाक्यपरिवर्तन” कहते हैं।
हम किसी भी वाक्य को किसी अन्य प्रकार के वाक्य में परिवर्तित कर सकते हैं और परिवर्तन करने से उनके मूल अर्थ में थोड़ा सा भी अंतर नहीं आएगा।
हम चाहे तो – सरल वाक्य से मिश्र वाक्य या, सरल वाक्य को संयुक्त वाक्य, मिश्रा वाक्य से सरल वाक्य आदि मैं बदल सकते हैं।
क) सरल वाक्य से मिश्र वाक्य
सरल वाक्य- उसने तुम्हारा खेत खरीदा।
मिश्र वाक्य- उसने उस खेत को खरीदा, जो तुम्हारा था।
सरल वाक्य- अच्छे नेता को दोबारा चुना जाता है।
मिश्र वाक्य- जो नेता अच्छे होते है, उन्हें दोबारा चुना जाता हैं।
(ख) सरल वाक्य से संयुक्त वाक्य
सरल वाक्य- उसका लैपटॉप खराब होने के कारण वह असाइनमेंट नहीं दी।
संयुक्त वाक्य- उसका लैपटॉप खराब हो गया था, जिस कारण वह असाइनमेंट नहीं दे सका।
सरल वाक्य- बर्षा ऋतू खत्म होने पर पतझड़ मौसम आ जाता रहा।
संयुक्त वाक्य- बर्धा ऋतू खत्म हुई और पतझड़ मौसम आ गया।
(ग) मिश्र वाक्य से सरल वाक्य
मिश्र वाक्य- वैज्ञानिको ने चेतावनी दी और कहा की जलवायु अस्थिर हो रही है।
सरल वाक्य- वैज्ञानिकों ने चेतावनी की घोषणा करते हुए कहा की, दुनिया की जलवायु में अस्थिरता आ गई है इसलिए सब सचेत रहें
।
मिश्र वाक्य- तुम सिग्रेट क्यों पि रहे थे।
सरल वाक्य- मुझे बताओ तुम सिग्रेट पि कर क्या दर्शना चाहते हो।
(घ) कर्तृवाचक से कर्मवाचक वाक्य
कर्तृवाचक वाक्य- मैं पढ़ता हूँ।
कर्मवाचक वाक्य- मुझसे पढ़ा जाता है।
कर्तृवाचक वाक्य- तुम रामायण पढ़ाते हो।
कर्मवाचक वाक्य- तुमसे रामायण पढ़ाया जाता है।
(ड़) विधिवाचक से निषेधवाचक वाक्य
विधिवाचक वाक्य- सांप नेवले से लम्बा होता है।
निषेधवाचक- नेवला सांप से लम्बा नहीं होता।
विधिवाचक वाक्य- भारत के लोगों मर देशभक्ति कूट-कूट कर भरी है।
निषेधवाचक वाक्य- शायद ही कोई ऐसा भारतीय हो जिसमे देशभक्ति कूट-कूट न भरी हो।
ऊपरलिखित वाक्यों में हमने एक वाक्य को दूसरे वाक्य में परिवर्तित किया है लेकिन उन वाक्यों के लिखने में अंतर जरूर आया है लेकिन उनके अर्थ में कोई विशेष अंतर् नहीं आया।
उपवाक्य –
शब्दों का एक ऐसा समूह जिसका अपना एक अर्थ हो और जो एक वाक्य का भाग हो और जिसमें उद्देश्य और विधेय हो, उपवाक्य कहलाता है जब उपवाक्य आरंभ होते हैं तो उनके आरंभ में अधिकतर जिससे ताकि, जो, जितना, ज्यों-त्यों, चूँकि, क्योंकि, यदि, यद्यपि, जब, जहाँ इत्यादि होते हैं।
उपवाक्य के भेद
उपवाक्य तीन प्रकार के होते हैं-
(1) संज्ञा-उपवाक्य (Noun Clause)
(2) विशेषण-उपवाक्य (Adjective Clause)
(3) क्रियाविशेषण-उपवाक्य
वाक्य-शुद्धि –
किसी भी भाषा की अत्यंत महत्वपूर्ण इकाई वाक्य होते हैं, और इसलिए भाषा के ज्ञान के लिए वाक्य-शुद्धि का ज्ञान होना भी आवश्यक होता है।
वाक्य की रचना में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, अव्यय, क्रिया से संबंधित कई प्रकार की अशुद्धियां हो सकती है, इसलिए वाक्य शुद्धि का ज्ञान होना अति महत्वपूर्ण है।